मार्जिन का भ्रमजाल: तात्कालिक लाभ से अधिक महत्वपूर्ण है इनोवेशन

भारतीय उद्यमियों को नवाचार के चक्र का फायदा उठाना चाहिए। उन्हें मुनाफे में अल्पावधि की गिरावट के कारण डरना नहीं चाहिए।

ऐपल के साथ काम कर रहे वरिष्ठ लोगों से बातचीत में एक बात साफ जाहिर होती है कि वे इस बात को लेकर निराश हैं कि भारत का कारोबारी जगत भारत में ऐपल के वास्ते उपयुक्त माहौल बनाने के लिए जरूरी इच्छाशक्ति नहीं दिखा रहा है। चीन उनकी राह में बाधाएं खड़ी कर रहा है जबकि देश के उद्यमियों का मुनाफे पर ध्यान भी एक बाधा है। फिर चाहे बात कलपुर्जा आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने की हो या डिस्प्ले यूनिट्स में विशाल पूंजी निवेश की, बड़े भारतीय समूह पूंजी की प्रतिबद्धता नहीं दिखा रहे।

उनका कहना है कि इसमें मार्जिन कम है और ऐपल गुणवत्ता व पैमाने को लेकर बहुत तगड़ी जांच करता है। यानी वास्तव में देखें तो पूंजी पर उचित रिटर्न पाने के लिए कई साल तक सतत प्रयास करने होंगे। क्या यह उपयुक्त है? कई उद्यमी यह मानते हैं कि उनके अंशधारकों को यह पसंद नहीं आएगा क्योंकि वे शुरुआती नुकसान को सहन नहीं करेंगे और पूंजी पर रिटर्न को लेकर सवाल उठाएंगे। मार्जिन में गिरावट के साथ मूल्यांकन पर दबाव बनेगा और बाजार पूंजीकरण पर भी। देश के उद्योगपतियों में यह आम धारणा है।

ऐपल के साथ काम कर रहे वरिष्ठ लोगों से बातचीत में एक बात साफ जाहिर होती है कि वे इस बात को लेकर निराश हैं कि भारत का कारोबारी जगत भारत में ऐपल के वास्ते उपयुक्त माहौल बनाने के लिए जरूरी इच्छाशक्ति नहीं दिखा रहा है। चीन उनकी राह में बाधाएं खड़ी कर रहा है जबकि देश के उद्यमियों का मुनाफे पर ध्यान भी एक बाधा है। फिर चाहे बात कलपुर्जा आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने की हो या डिस्प्ले यूनिट्स में विशाल पूंजी निवेश की, बड़े भारतीय समूह पूंजी की प्रतिबद्धता नहीं दिखा रहे।

उनका कहना है कि इसमें मार्जिन कम है और ऐपल गुणवत्ता व पैमाने को लेकर बहुत तगड़ी जांच करता है। यानी वास्तव में देखें तो पूंजी पर उचित रिटर्न पाने के लिए कई साल तक सतत प्रयास करने होंगे। क्या यह उपयुक्त है? कई उद्यमी यह मानते हैं कि उनके अंशधारकों को यह पसंद नहीं आएगा क्योंकि वे शुरुआती नुकसान को सहन नहीं करेंगे और पूंजी पर रिटर्न को लेकर सवाल उठाएंगे। मार्जिन में गिरावट के साथ मूल्यांकन पर दबाव बनेगा और बाजार पूंजीकरण पर भी। देश के उद्योगपतियों में यह आम धारणा है।

भारतीय बाजार मुनाफे पर बहुत अधिक केंद्रित हैं और इसके चलते पूंजी पर होने वाले रिटर्न पर भी। भारत का लॉन्ग टर्म इक्विटी मार्केट रिटर्न प्रोफाइल दुनिया के बेहतरीन रिटर्न प्रोफाइल में से एक है और पूंजी अनुशासन पर ध्यान केंद्रित करना इसकी मजबूती रही है। भारत द्वारा चीन से बेहतर रिटर्न (विगत 25 साल में चीन ने 4 फीसदी का वास्तविक रिटर्न दिया जबकि भारत ने 6.9 फीसदी) देने की एक वजह यह है कि वह मुनाफे और पूंजी आवंटन पर ध्यान देता है। वैश्विक निवेशक इस बात की सराहना करते हैं कि भारतीय उद्यमी पूंजी की कीमत समझते हैं।

हालांकि, क्या मुनाफे और बाजार पूंजीकरण पर इतना अधिक ध्यान दीर्घकालिक कमी के रूप में सामने आएगा? क्या भारतीय निवेशक अल्पकालिक लाभ पर इतना अधिक केंद्रित हैं कि वे हमारी कंपनियों को कामयाबी और वैश्विक नेतृत्व में सक्षम बनने के लिए दीर्घकालिक निवेश का अवसर तक नहीं दे रहे हैं? आखिरकार जब भी आप किसी नए कारोबार में जाते हैं या वैश्विक स्तर पर काम करने की क्षमता जुटाने का प्रयास करते हैं तो पहले निवेश करना होता है और नुकसान भी होता है। नवाचार के साथ जोखिम शामिल रहता है।

आखिर ऐपल को चीन में आपूर्तिकर्ता जुटाने में दिक्कत क्यों नहीं हुई? चीन के आपूर्तिकर्ता तकनीक सीखने और बड़े पैमाने पर काम करने के लिए कम मार्जिन स्वीकार करने को तैयार थे। इसकी बदौलत वे विनिर्माण के क्षेत्र में अग्रणी बने और वैश्विक विनिर्माण में उनकी हिस्सेदारी 32 फीसदी तक जा पहुंची। या फिर शायद वे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में प्रतिस्पर्धा ही नहीं करना चाहते और न ही नवाचार से जुड़े जोखिम उठाना चाहते हैं। भारतीय प्रवर्तक निवेशकों को दोष दे रहे हैं। शायद उच्च मूल्यांकन ने हर किसी को आत्मसंतुष्ट कर रखा हो।

अगर आपको केवल भागीदारी की बदौलत अरबों डॉलर के मूल्यांकन वाली कंपनी बने रहने का अवसर मिल रहा है तो कुछ अलग क्यों करना? आईटी कंपनियों की बात करें तो अपने बेहतरीन दिनों में 30 फीसदी का आय मार्जिन होने के बावजूद उन्होंने कभी शोध एवं विकास पर उल्लेखनीय खर्च नहीं किया। अपने राजस्व का कुछ प्रतिशत हिस्सा भी नहीं। इस बारे में पूछे जाने पर वे अक्सर अपने निवेशकों पर दोष मढ़ते हुए कहते कि वे मुनाफा कम नहीं होने दे सकते वरना निवेशक बाजार में उन्हें दंडित करेंगे।

चीन कमजोर उदाहरण हो सकता है क्योंकि वहां कारोबारी क्षेत्र को सरकार भारी सब्सिडी देती है, वित्तीय आवंटन में अनुशासन का अभाव है और वे हर कीमत पर आकार और पैमाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अमेरिका का अनुसरण जरूर किया जाना चाहिए। वॉल स्ट्रीट में मौजूद तकनीकी या स्वास्थ्य सेवा अथवा उपभोक्ता कंपनियों का अपनी बिक्री का 10 फीसदी शोध या ब्रैंडिंग पर व्यय करना आम बात है। इससे कम खर्च करने पर उन्हें दंडित किया जाता है। उदाहरण के लिए अकेले अल्फाबेट शोध एवं विकास पर 50 अरब डॉलर खर्च करती है जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 1 फीसदी से ज्यादा है। कंपनियों द्वारा अपने मुनाफे या नकदी से नए कारोबार शुरू करना आम बात है।

उदाहरण के लिए माइक्रोसॉफ्ट को अज्योर क्लाउड कारोबार तैयार करने में छह वर्ष लगे, इस प्रक्रिया में उसने 10अरब डॉलर गंवाए। इसके बावजूद निवेशकों ने धैर्य रखा और कंपनी के पास यह स्पष्टता रही कि वह अल्पावधि में मार्जिन पर असर के बावजूद निवेश जारी रख सकती है। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस तैयार करते समय भी कंपनी यही कर रही है। आपके पास नेटफ्लिक्स और एमेजॉन के उदाहरण हैं। ये वैश्विक नेतृत्व करने वाले नवाचारी कारोबारी मॉडल हैं। वर्षों बाद मुनाफा कमाने के अनुमान के बावजूद निवेशक इनमें निवेश के इच्छुक थे।

आखिर अमेरिका में सार्वजनिक बाजार घाटे में चल रहे इन कारोबारों में निवेश करने के इच्छुक क्यों रहे जबकि भारत में ऐसा नहीं रहा? क्या इसलिए कि अमेरिकी कंपनियां इन कारोबारों को विश्व स्तर पर ले जा सकती हैं और भारी मूल्य तैयार कर सकती हैं? सफल कारोबार इतना मूल्य तैयार करते हैं कि शुरुआती नुकसान की भरपाई हो जाए। उदाहरण के लिए एमेजॉन ने 1997 में सूचीबद्ध होने के बाद अपना बाजार पूंजीकरण 32 फीसदी सालाना की दर से बढ़ाया है। अमेरिकी बाजारों का उच्च मूल्यांकन नवाचार बढ़ाने के मामले में ढांचागत बढ़त साबित हो रहा है और जोखिम लेने की प्रवृत्ति सफल साबित हो रही है।

सच कहें तो नवाचार की कद्र करना और नए कारोबारों को चुनना अमेरिकी वित्तीय बाजारों की खासियत है। अमेरिका बुनियादी शोध की फंडिंग, उद्योग जगत के साथ अकादमिक साझेदारी और वेंचर कैपिटल तथा अन्य निवेशक समर्थित कंपनियों को हर कदम पर मदद करता है। भारत में भी अकादमिक जगत-उद्योग जगत और सरकार की साझेदारी मजबूत करनी होगी। हमें वेंचर कैपिटल की भी जरूरत है ताकि हम तकनीक की गहराई में जा सकें और उपभोक्ता केंद्रित ऐप्स से बाहर ध्यान देना चाहिए। हमें सार्वजनिक बाजार निवेशकों की जरूरत है जो अल्पावधि के मार्जिन से परे देख सकें।

भारत अपनी बिक्री का 1 फीसदी से भी कम शोध एवं विकास पर व्यय करता है। श्रम की कम लागत और शोध विकास पर न्यूनतम खर्च के बावजूद हमारी कंपनियों का मार्जिन वैश्विक समकक्षों से अधिक नहीं है। भारत में भी अमेरिका जैसा माहौल बन सकता है जहां निवेशक नए कारोबार खड़े करने के लिए शुरुआती घाटा सहने को तैयार रहते हैं। देश में निजी और सार्वजनिक बाजार की मजबूत व्यवस्था को देखते हुए भारत के पास अवसर है कि वह अमेरिका के अलावा इकलौता ऐसा बाजार बन सके जहां नुकसान उठा रहे कारोबारों की कद्र करते हुए सफलता के आकलन के लिए दीर्घकालिक नज़रिया अपनाया जाए। हम अपने उच्च मूल्यांकन को ऐसे माहौल में बदल सकते हैं जहां जोखिम लेने को प्रोत्साहित किया जाए। हम शायद इकलौता बड़ा बाजार हैं जो अमेरिका के अनुकरण की उम्मीद कर सकता है क्योंकि हमारे यहां भी वैसी ही प्रोफाइल है जहां बाजार सफलता को खूब पुरस्कृत करता है।

मेरी नजर में देश के शीर्ष उद्यमियों को सार्वजनिक बाजार निवेशकों का साथ मिलेगा ताकि वे नए कारोबार खड़े कर सकें। सार्वजनिक बाजार अल्पावधि पर ध्यान केंद्रित नहीं करते। कंपनियों को सार्वजनिक बाजारों से वृद्धि के लिए पूंजी जुटाना सहज लग सकता है बजाय कि निजी इक्विटी से जो अक्सर न्यूनतम रिटर्न की मांग करती है और सिर्फ 5-6 साल के परिदृश्य को ध्यान में रखती है।

भारत को नवाचार के चक्र का लाभ लेना होगा और हर किसी को इसमें अपनी भूमिका निभानी है। सरकार को बुनियादी फंडिंग देनी होगी और उद्योग और अकादमिक जगत के बीच रिश्ते मजबूत करने होंगे। निजी बाजारों को चाहिए कि वे वास्तविक नवाचार की मदद करें और सार्वजनिक बाजार निवेशकों को भी केवल अल्पावधि के मार्जिन की फिराक में नहीं रहना चाहिए। हम जोखिम लेने की संस्कृति विकसित कर सकते हैं जो अमेरिका के सिवा कोई देश नहीं विकसित कर पाया। हमें इस दिशा में काम करना चाहिए।

आकाश प्रकाश